Friday 7 October 2016

अस्तित्व

समाहित करने की क्षमता,
सहेज कर रखने की क्षमता,
केवल पृथ्वी में है या
उस से जुड़ाव रखने वाले समुद्र में।
बदल तो तेरा तुझ को अर्पण कर
स्वयं को बरसा देता है,
पृथ्वी फिर उसे अपना लेती है,
समाहित कर लेती है अपनी अंक में,
अन्य सभी संसाधनों के समान।
सभी जड़ या चेतन बन कर
आते हैं अस्तित्व में
और मिट कर धरा के अंचल में
सिमट जाते हैं
दोबारा अस्तित्व में आने के लिए।
धरोहर स्वरुप मिला अस्तित्व,
फिर इठलाना या गर्व करना कैसा?
स्वयं में हम हैं क्या?
हमे मूरत रूप मिला
किसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु
विरक्ति आकाश की
समृद्ध करती है धरती को।
इस भ्रमांड में
सभी पूरक हैं परस पर
एक का कर्म, स्वाभाव
प्रभावित करता है पूरे भ्रमांड को।
फिर भी हम बिना सोचे समझे
करते हैं कर्म स्वार्थ पूरित,
नही समझते महत्त्व अस्तित्व का,
मिटा देना चाहते हैं
निज स्वार्थ के लिए
दूसरे का अस्तित्व,
यह जानते हुए की
हम स्वयं भी हैं नश्वर
मिट जाएगा एक दिन
हमारा भी अस्तित्व।

निर्दोष त्यागी