प्यारी रौनक! कमी तुम्हारी,
नहीं भरेगी सदा खलेगी।
चुंबन पर प्रसन्न हो जाना,
ध्यान आकर्षण सब का करना,
अन्तर में छवि बनी रहेगी।
इस जीवन का कष्ट बड़ा था,
बांट नहीं पाता था कोई,
फिर भी तत्पर थे सब अपने,
रहो प्रसन्न यत्न करते थे।
अब तुम हो गयी हो ओझल,
देख नहीं पाएंगे तुम को!
कष्ट बड़ा है, पर है विवशता,
विधी विधान अपना करते हैं।
श्रद्धा पुष्प भेंट कर अपने,
ईश्वर से हम करें प्रार्थना,
नवजीवन यदि मिले तुम्हें तो,
यही जुड़ाव बनाए रखना।
Saturday, 1 April 2017
प्यारी रौनक
विवशता (पिता जी की मृत्यु पर)
आज फिर जीवन का एक स्तंभ
ध्वस्त हो गया मेरा।
एक बार फिर हिल गया, दहल गया
मेरे जीवन का भवन।
जीवन चक्र समाप्त होने का विधान
आज फिर आहत कर गया
मेरी स्थिरता को।
फिर से सामान्य होने का प्रयास
प्रारंभ हो गया प्रकृति के अनुरूप।
प्रतिपल असामान्य से सामान्य
होने का यह चक्र फिर से
प्रारंभ करने को विवश हूँ मैं।
एक स्तंभ मिला एक हुआ ध्वस्त
किंकर्तव्य विमूढ सी मैं केवल
दर्शक हूँ, असहाय, निराश, विवश?
निर्दोष त्यागी
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